शनिवार, 5 नवंबर 2011


                                         मेरा ख्वाब 
एक छोटा सा है ख्वाब 
कुछ पाने की है आस 
एक ऐसी मंजिल जिसकी 
है कबसे मुझको तलाश l 
दुनिया में मेरी भी हो एक पहचान
भले वो छोटी सी हो 
पर फिर भी उसपर हो मुझको नाज़
करू ऐसा काम जिससे 
भले ही किसी का न हो भला
पर कभी भी किसी का 
न हो कोई नुकसान l 
सूरज सा न हो आग 
पर एक दीये का हो प्रकाश 
सागर सी न हो विशाल पर 
एक मीठा जलाशय बन पाऊँ काश
आँधी का तेज़ न हो साथ
ठंडी पवन रहे हमेशा पास
अपनी नज़रों में बन सकूँ 
मैं कुछ खास 
कोशिश है पूरी मेरी 
ख़त्म करने की अपनी यह तलाश l 
                       
हाय रे यह महंगाई 
सबमें मचा दी त्राहि-त्राहि 
क्या अमीर और क्या गरीब 
सबकी इसने बैंड बजायी  
पर्वो की थी शान मिठाई 
पर अब तो थोड़ी मिठास पाने में 
ख़त्म हो जाती सारी कमाई 
थाली भी अब हो रही खाली
कैसे करे अनाज की भरपाई 
करने जाते थे होटलों में मस्ती
पर अब ढाबे में भी नहीं मस्ती सस्ती
नैनों ने सोचा दे दूँ मात 
पर बिन पेट्रोल दिखाए कैसे करामत
कुछ भी तो इससे बच न पाई 
हाय कैसे इससे निकले भाई
आई गयी कितनी सरकार
पर किसी ने सुनी न गुहार 
बस करती एक-दूजे की बुराई
और बढ़ा रही अपनी कमाई
अपनी थाली में नहीं है दाना 
दूसरों को बाट रही खाना
पड़ोसी देशों की कर रही भलाई 
और लूट रही वाहवाही 
अब जनता क्या करे 
किसके आगे करे सुनवाई
कोई भी छोड़ दे हमें 
पर साथ है हमेशा महंगाई